किसी भी घर के लिए ओसारा का बड़ा ही महत्व है. ओसारा (बैठकखाना या ड्राइंग रूम) घर का वह कमरा है जिससे होकर हम घर के अंदर प्रवेश करते हैं . गांवों में ये ओसारा ही है. ...तरह- तरह का ओसारा .....फूस का, खपरैल का, एस्बेस्टर्स का, कच्चे- पक्के मकानों का, कुछ बिना पलस्तर चढ़ाये ईंटों वाले तो कुछ दीवारों पर डिजाइनदार फूल-झाड़ वाले---कई 'वैराइटी' मिलेंगे आपको......मोहल्लों में बैठकरूम या बैठकखाना ...बड़े शहरों में बड़े शानो- शौकत और साज- सज्जा के साथ यही 'ड्राइंग रूम' बन जाता है.
इन ओसारों में घर के मालिक या बड़े बुजुर्गों का ही डेरा जमा होगा. घर के बाकि लोग तभी आएंगे जब कोई काम हो या घर के बाहर -भीतर आना -जाना हो. इन छोटे ओसारों में बड़ी - बड़ी घटनाएँ घटती हैं. कभी ससुरजी वहीँ से अखबार पढ़ते-पढ़ते आवाज लगाएंगे- "बहू, दो कप चाय ले आना." कभी किसी अपने के आने पर ख़ुशी से चहकती आवाज आएगी- "ममता बिटिया, जरा देखो तो सही कौन आये हैं...!"
ओसारों की तो बात ही कुछ और है..बिना फ्रिज वाले घर के ओसारे में जब ताजे पके व्यंजनों की खुशबू फैलती है... तो आये हुए मेहमानों (चाहे वे बुलाये हुए ना भी हों ) का सिर्फ पेट ही नहीं भरता, आत्मा भी तृप्त हो जाती है....बड़े-बुजुर्गों की गुफ्तगू, शास्त्रीजी का गीता ज्ञान, पंडितजी का पंजी-पत्रा और उनकी अनोखी मंगल-अमंगल भविष्यवाणी, और फिर उसके निदान ...सबकुछ का प्रत्यक्षदर्शी ये ओसारा ही होता है...
ओसारों की तो बात ही कुछ और है..बिना फ्रिज वाले घर के ओसारे में जब ताजे पके व्यंजनों की खुशबू फैलती है... तो आये हुए मेहमानों (चाहे वे बुलाये हुए ना भी हों ) का सिर्फ पेट ही नहीं भरता, आत्मा भी तृप्त हो जाती है....बड़े-बुजुर्गों की गुफ्तगू, शास्त्रीजी का गीता ज्ञान, पंडितजी का पंजी-पत्रा और उनकी अनोखी मंगल-अमंगल भविष्यवाणी, और फिर उसके निदान ...सबकुछ का प्रत्यक्षदर्शी ये ओसारा ही होता है...
कभी भावी सम्बन्धियों का डेरा लगा होगा और कोई मुन्नी या गुड़िया बड़ी सहमी- सकुचाई सी, आँखे नीची किये हुए मानो जैसे जमीन मे धंसने ही वाली हो .. चाय या शरबत की ट्रे लिए आएगी.... और उसके आगे पीछे या साथ-साथ दीदी या भाभी उसको ऐसे थामी आएगी जैसे वह खुद चल ही नहीं पायेगी. और जिसकी अपनी दीदी -भाभी न हो वो भी पड़ोस की दीदी -भाभी या चाची को बुलाना नहीं भूलेगी.
और... जब ट्रे लेकर वो गुड़िया या मुन्नी वापस घर में दाखिल हो जाती है तो अंदर से आनेवाली फुसफुसाहट सुनकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि घर की देवियाँ घर में घुस जाने का स्वांग तो कर गयी हैं पर वास्तव में ओसारे के दरवाजे से कान लगाये खड़ी हैं. उन्हें भी ओसारे के 'अपडेट' जानने की बड़ी उत्सुकता रहती है.
ये ओसारे सिर्फ सामान्य कमरे नहीं घर का महत्वपूर्ण हिस्सा है. लोग इसे बढ़िया-से बढ़िया रखने की कोशिश करते हैं. घर की सबसे अच्छी चारपाई या कुर्सी उस कमरे की शोभा बढ़ा रही होती है. बड़े शहरों के बड़े ड्राइंग रूम्स में जहाँ गद्देदार सोफे पर चाहे आप पसरकर भी बैठ लें गांव के ओसारे में पड़ी चारपाई और स्टील की कुर्सी पर बैठने का वो सुकून नहीं मिल सकता. क्योंकि भले ही आप नाम के आरामदायक सोफों पर बैठे होंगे पर बैठने वाले का मुंह या तो स्मार्ट फ़ोन या महंगे TAB या फिर भारी- भरकम LED टीवी में घुसा मिलेगा. जबकि ओसारे में बैठाने वाले आपको ऐसे देखेंगे जैसे वे साक्षात् अपने आराध्य के दर्शन कर रहे हों..
जिन गांवों में बिजली अब भी नहीं पहुंची है या जहाँ पहुंचकर भी टिकती नहीं है, ऐसे गांवों में लोग ऐसा पूरबवाही (पूरब दिशा में दरवाजे वाले ) ओसारे बनाते हैं ...जहाँ आपको बिना पंखे के भी A C की तरह ठंडक मिलेगी. ये ओसारे और ओसारों में रहनेवाले किसी के साथ भेद भाव नहीं करते... चाहे कोई बिजली- पानी- सड़क दिलाने का अपना वादा भूल भी गया हो ......पूरे पांच साल बाद भी वे ओसारे उसे उतने ही प्यार से बैठाएंगे और उतनी ही ठंडक देंगे जितनी वे वर्षों पहले से देते रहे हैं..
तभी आप देखेंगे की शहरों में तो चुनावी रैलियां निकलेंगी जहाँ बड़े - बड़े नेता हाथ जोड़कर खुली जीप पर ऐसे खड़े मिलेंगे जैसे कोई मूर्ति बस...अब .... विसर्जन के लिए ले जाई जा रही हो....
पर गांवों में यही लोग बड़ी गाड़ियों से नीचे उतरकर देहरी- देहरी पर जाते हैं..और इन्हीं ओसारों में बैठकर अपना पसीना भी सुखाते हैं ....
कभी मौका लगे तो ओसारे में जाकर बैठिएगा जरूर...थोड़े -से कौतूहल के विषय तो आप होंगे पर ....फिर देखिये ....कितनी शांति मिलती है...कितना अपनापन लगता है.... ..
और... जब ट्रे लेकर वो गुड़िया या मुन्नी वापस घर में दाखिल हो जाती है तो अंदर से आनेवाली फुसफुसाहट सुनकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि घर की देवियाँ घर में घुस जाने का स्वांग तो कर गयी हैं पर वास्तव में ओसारे के दरवाजे से कान लगाये खड़ी हैं. उन्हें भी ओसारे के 'अपडेट' जानने की बड़ी उत्सुकता रहती है.
ये ओसारे सिर्फ सामान्य कमरे नहीं घर का महत्वपूर्ण हिस्सा है. लोग इसे बढ़िया-से बढ़िया रखने की कोशिश करते हैं. घर की सबसे अच्छी चारपाई या कुर्सी उस कमरे की शोभा बढ़ा रही होती है. बड़े शहरों के बड़े ड्राइंग रूम्स में जहाँ गद्देदार सोफे पर चाहे आप पसरकर भी बैठ लें गांव के ओसारे में पड़ी चारपाई और स्टील की कुर्सी पर बैठने का वो सुकून नहीं मिल सकता. क्योंकि भले ही आप नाम के आरामदायक सोफों पर बैठे होंगे पर बैठने वाले का मुंह या तो स्मार्ट फ़ोन या महंगे TAB या फिर भारी- भरकम LED टीवी में घुसा मिलेगा. जबकि ओसारे में बैठाने वाले आपको ऐसे देखेंगे जैसे वे साक्षात् अपने आराध्य के दर्शन कर रहे हों..
जिन गांवों में बिजली अब भी नहीं पहुंची है या जहाँ पहुंचकर भी टिकती नहीं है, ऐसे गांवों में लोग ऐसा पूरबवाही (पूरब दिशा में दरवाजे वाले ) ओसारे बनाते हैं ...जहाँ आपको बिना पंखे के भी A C की तरह ठंडक मिलेगी. ये ओसारे और ओसारों में रहनेवाले किसी के साथ भेद भाव नहीं करते... चाहे कोई बिजली- पानी- सड़क दिलाने का अपना वादा भूल भी गया हो ......पूरे पांच साल बाद भी वे ओसारे उसे उतने ही प्यार से बैठाएंगे और उतनी ही ठंडक देंगे जितनी वे वर्षों पहले से देते रहे हैं..
तभी आप देखेंगे की शहरों में तो चुनावी रैलियां निकलेंगी जहाँ बड़े - बड़े नेता हाथ जोड़कर खुली जीप पर ऐसे खड़े मिलेंगे जैसे कोई मूर्ति बस...अब .... विसर्जन के लिए ले जाई जा रही हो....
पर गांवों में यही लोग बड़ी गाड़ियों से नीचे उतरकर देहरी- देहरी पर जाते हैं..और इन्हीं ओसारों में बैठकर अपना पसीना भी सुखाते हैं ....
कभी मौका लगे तो ओसारे में जाकर बैठिएगा जरूर...थोड़े -से कौतूहल के विषय तो आप होंगे पर ....फिर देखिये ....कितनी शांति मिलती है...कितना अपनापन लगता है.... ..